केंद्र सरकार के ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ प्रस्ताव पर चर्चा तेज हो गई है। यह योजना देशभर में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर निकाय और पंचायत चुनावों को एकसाथ कराने की बात करती है। आइए समझते हैं कि इसके लागू होने के बाद क्या बदलाव आएंगे और चुनावी प्रक्रिया कैसी होगी।
क्या है ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’?
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मतलब है कि पूरे देश में एक समय पर चुनाव होंगे। इसमें लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर निकाय और पंचायत चुनाव एक तय समयसीमा में संपन्न होंगे। इससे बार-बार चुनाव कराने की आवश्यकता खत्म हो जाएगी और प्रशासनिक खर्च कम होगा।
कैसे होंगे चुनाव?
- एक साथ मतदान: एक ही समय पर पूरे देश में वोटिंग होगी।
- सरकार गिरने पर क्या होगा?
- अगर किसी राज्य सरकार का कार्यकाल बीच में समाप्त होता है, तो वहां मध्यावधि चुनाव कराए जाएंगे, लेकिन नई सरकार का कार्यकाल केवल पूर्व सरकार की बची हुई अवधि तक होगा।
- तैयारी और प्रक्रिया:
- चुनाव आयोग को पूरे देश में एकसाथ चुनाव करवाने के लिए विस्तृत योजना बनानी होगी।
- राज्यों और केंद्र सरकारों को संविधान में संशोधन करने की जरूरत होगी।
बदलाव और फायदे
- चुनावी खर्च में कमी: बार-बार चुनाव कराने से होने वाले खर्च में भारी कमी आएगी।
- आचार संहिता की समस्या खत्म: बार-बार आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य रुक जाते हैं। एकसाथ चुनाव से यह समस्या नहीं रहेगी।
- प्रशासन पर बोझ कम: चुनावी तैयारियों में प्रशासनिक तंत्र पर जो बोझ पड़ता है, वह कम होगा।
- नागरिकों के लिए सुविधा: मतदाताओं को बार-बार मतदान प्रक्रिया से गुजरने की जरूरत नहीं होगी।
विपक्ष के सवाल
- संघीय ढांचे पर असर: विपक्षी दलों का कहना है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से राज्यों की स्वतंत्रता खत्म हो सकती है।
- व्यवहारिक चुनौतियाँ: बड़े देश में एकसाथ चुनाव करवाना व्यवहारिक रूप से कठिन हो सकता है।
- लोकतंत्र पर खतरा: आलोचकों का तर्क है कि इससे क्षेत्रीय मुद्दे दब जाएंगे और राष्ट्रीय पार्टियों को अधिक फायदा मिलेगा।
क्या कहती है रामनाथ कोविंद समिति?
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लागू करने की सिफारिश की थी। समिति का मानना है कि यह नीतियों के स्थिर क्रियान्वयन और विकास कार्यों में तेजी लाएगा।
निष्कर्ष
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ देश की चुनावी व्यवस्था में बड़ा बदलाव ला सकता है। इसके फायदे और चुनौतियाँ दोनों हैं। अब यह देखना अहम होगा कि सरकार विपक्ष और राज्यों को कैसे मनाती है और यह विधेयक संसद में कितना समर्थन पाता है।